Monday, October 31, 2011

फिनलैंड : संसार का सबसे अच्छा देश

न्यूजवीक पत्रिका ने 2010 में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर फिनलैंड को संसार का सबसे अच्छा देश घोषित किया है। यह सर्वेक्षण पांच महत्वपूर्ण पैमानों- स्वास्थ्य, आर्थिक गतिशीलता, शिक्षा, राजनीतिक माहौल तथा जीवन की गुणवत्ता पर आधारित था। अनुसंधान प्रयोगशालाओं को स्थापित करने के लिए फिनलैंड आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सबसे पसंदीदा देश बन गया है। मानव विकास सूंचकाक के साथ-साथ विश्व आर्थिक मंच द्वारा घोषित प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में भी फिनलैंड को अग्रणी देश माना जाता है। फिनलैंड के विकास के क्या कारक हैं? इससे क्या सीखा जा सकता हैं? फिनलैंड के विश्वविद्यालयों तथा तकनीकी संस्थाओं को देश में नवाचार तथा अनुसंधान का वातावरण बनाने का श्रेय जाता है। यहां शोध तथा अनुसंधान में कार्यरत कर्मचारियों का अनुपात अमेरिका तथा जापान से भी अधिक है। भारत की तरह फिनलैंड भी किसी समय कृषि आधारित पंरपरागत अर्थव्यवस्था थी। ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की शुरुआत 80 के दशक में की गई। तत्कालीन नीति निर्माताओं ने देश की औद्योगिक संरचना तथा अनुसंधान पर ध्यान केद्रित किया। निस्संदेह श्रम आधारित उद्योगों में भारत तथा चीन से फिनलैंड प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं था। इस कारण अनुसंधान तथा तकनीकी नवाचार को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक था, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में फिनलैंड का अपना मुकाम बन सके। फिनलैंड में अनुसंधान तथा नई प्रौद्यौगिकियों के विकास पर हर साल अरबों डॉलर खर्च किए जाते हैं। एक अनुसंधान के मुताबिक फिनलैंड सकल घरेलु उत्पाद का लगभग 3.5 प्रतिशत शोध तथा विकास पर खर्च करता है तथा निकट भविष्य मे इसे 4 प्रतिशत करने का लक्ष्य है। इस धन का उपयोग सरकार द्वारा स्थापित सेंटर ऑफ स्ट्रेटेजिक एक्सीलेंस के माध्यम से किया जाता है जो विभिन्न क्षेत्रों मे स्थापित किए गए हैं। सरकार के अलावा निजी कंपनिया भी काफी धन तकनीकी विकास पर खर्च करती हैं। फिनलैंड के नीति निर्माताओं का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रयास राष्ट्रीय अभिनव प्रणाली (नेशनल इनोवेशन सिस्टम) की स्थापना करना है। इसका लक्ष्य शोध तथा तकनीकी विकास सुनिश्चित करना है। इसके माध्यम से देश में एक ऐसा नेटवर्क तैयार किया गया है, जिसमें शैक्षिक एवं शोध संस्थाओं के साथ-साथ निजी कंपनियों को प्रमुख रूप से शामिल किया गया है। इन नेटवकरें के माध्यम से बड़ी कंपनियों के साथ-साथ छोटी कंपनियां भी लाभान्वित होती हैं। शायद यही कारण है फिनलैंड की छोटी-छोटी कंपनियां भी विश्व बाजार में तकनीकी कौशल के लिए जाना जाती हैं। शोध तथा शैक्षिक संस्थाओं का कार्य तकनीकी का विकास करना है। जबकि कंपनियां इन तकनीकों के उपयोगकर्ता के रूप मे जानी जाती हैं। भारत में भी इस प्रकार के नेटवर्क की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय अभिनव परिषद (नेशनल इनोवेशन काउंसिल) का गठन किया गया है तथा प्रत्येक राज्य सरकार को राज्य स्तरीय अभिनव परिषद गठित करने का सुझाव दिया गया है। हालांकि केवल दो या तीन राज्यों ने इस पर गंभीरता दिखाते हुए इनकी स्थापना की प्रक्रिया प्रारंभ की है। फिनलैंड की शिक्षा व्यवस्था संसार में अपना विशेष स्थान रखती है। यहां शिक्षा पूर्ण रूप से नि:शुल्क दी जाती है। मंदी के दौर मे भी वहां की सरकारों ने शैक्षिक संस्थाओं को दी जाने वाली सहायता में कटौती नहीं की। फिनलैंड के विकास का मुख्य कारण एक दीर्घकालिक नीति है जिसका आधार व्यापारिक जगत तथा शैक्षिक संस्थानों के बीच उच्चस्तरीय संामजस्य है। भारत में इस प्रकार के संामजस्य का अभाव है। यहां के शैक्षिक संस्थान व्यापारिक जगत के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। इसके अलावा व्यापारिक जगत के माध्यम से शैक्षिक एवं शोध संस्थानों को पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं कराया जाता है। आने वाले समय में भारत को शोध तथा तकनीकि विकास को बढ़ावा देना होगा। शायद फिनलैंड ने जो 80 के दशक में किया भारत को आने वाले दशक में विश्व व्यापार में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए करना होगा।

Friday, October 21, 2011

लीबिया : मुअम्मर गद्दाफी तानाशाह

इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं कि 42 साल तक लीबिया में शासन करने वाले मुअम्मर गद्दाफी तानाशाह थे, क्योंकि वह खुद यह कहते थे कि उनके देश में लोकतंत्र के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। इस पर भी आश्चर्य नहीं कि अंतिम क्षणों में वह रहम की भीख मांगे रहते और फिर भी अपने ही लोगों द्वारा घेर कर मार डाले गए, क्योंकि ज्यादातर तानाशाहों का अंत इसी तरह होता आया है। यह भी सही है कि गद्दाफी की मौत के बाद लीबिया में जश्न का माहौल है, लेकिन दुनिया को इस सवाल का जवाब शायद ही मिल सके कि जिन पश्चिमी देशों ने उनका पराभव सुनिश्चित किया वे चार दशकों तक उनका साथ क्यों देते रहे? गद्दाफी के खात्मे के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने खास तौर पर यह रेखांकित किया है कि अब इस देश में एक नए युग की शुरुआत होगी। अमेरिकी राष्ट्रपति ने गद्दाफी के खात्मे के लिए नाटो की अगुआई में चले अभियान पर गर्व प्रकट किया है, लेकिन दुनिया को यह स्मरण है कि मुश्किल से दो साल पहले वह एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में गद्दाफी से हाथ मिला रहे थे। यदि पिछले 42 वर्षो के एक छोटे से कालखंड को छोड़ दिया जाए तो गद्दाफी के निरंकुश शासन वाले लीबिया के अमेरिका और यूरोप से मधुर संबंध बने रहे।

Friday, October 7, 2011

तकनीक की दुनिया का युग पुरुष

दुनिया की शीर्ष आइटी कंपनी एपल के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने कई साल तक कैंसर से लड़ने के बाद पांच अक्टूबर को इस दुनिया से विदा ले ली। महज 56 साल की उम्र में स्टीव जॉब्स का चला जाना न सिर्फ सूचना प्रौद्योगिकी जगत बल्कि पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा आघात है। वह सिर्फ सपने देखने वाले ही नहीं थे, बल्कि सपनों को सच करके भी दिखाते थे। वह अपनी तकनीकों, उत्पादों और विचारों के जरिए विश्व में क्रांतिकारी बदलाव लाए। आइटी की दुनिया में तकनीक का सृजन करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन उसे सामान्य लोगों के अनुरूप ढालने और खूबसूरत रूप देने वाले बहुत कम। स्टीव जॉब्स एक बहुमुखी प्रतिभा, एक पूर्णतावादी, करिश्माई तकनीकविद और अद्वितीय रचनाकर्मी थे। तकनीक के संदर्भ में उन्हें एक पूर्ण पुरुष कहना गलत नहीं होगा। उनके देखे 56 वसंतों के दौरान अगर यह विश्व क्रांतिकारी ढंग से बदल गया है तो इसमें खुद स्टीव जॉब्स की भूमिका भी कम नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए बिल्कुल सही कहा कि स्टीव की सफलता के प्रति इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्या होगी कि विश्व के एक बड़े हिस्से को उनके निधन की जानकारी उन्हीं के द्वारा आविष्कृत किसी न किसी यंत्र के जरिए मिली। स्टीव जॉब्स का जीवन अनगिनत पहलुओं, किंवदंतियों और प्रेरक कथाओं का अद्भुत संकलन रहा है। हर मामले में वह दूसरों से अलग किंतु शीर्ष पर दिखाई दिए। चाहे वह एपल से निकलने के बाद का संघर्ष हो या फिर लंबी जद्दोजहद के बाद उसी एपल में वापसी और फिर उसे आइटी की महानतम कंपनी बनाने की उनकी सफलता। माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स के साथ उनकी लंबी प्रतिद्वंद्विता के भी दर्जनों किस्से रहे हैं। दोनों किसी समय साथ-साथ थे, किंतु बाद में अलग-अलग रास्तों पर चले गए। सकारात्मक प्रतिद्वंद्विता की इस प्रेरक दंतकथा के उतार-चढ़ाव तकनीकी विश्व के बाकी दिग्गजों के लिए सीखने के नए अध्याय बनते चले गए। किंतु अंतत: स्टीव एक विजेता के रूप में विदा हुए। कोई डेढ़ साल पहले एपल ने माइक्रोसॉफ्ट को पछाड़कर दुनिया की सबसे बड़ी तकनीकी कंपनी बनने का गौरव प्राप्त किया। स्टीव के योगदान को बिल गेट्स से बेहतर कौन आंक सकता है, जिन्होंने उनके निधन पर कहा कि दुनिया पर किसी एक व्यक्ति द्वारा इतना जबरदस्त प्रभाव डालने की मिसाल दुर्लभ ही है। स्टीव के योगदान का प्रभाव आने वाली पीढि़यां भी महसूस करेंगी। विलक्षण थे स्टीव जॉब्स। वह सामान्य वैज्ञानिकों, तकनीकी विशषज्ञों, शोधकर्ताओं, विद्वानों, अन्वेषकों, आविष्कारकों, उद्यमियों में नहीं गिने जा सकते। वह तो ये सब थे, बल्कि उससे भी कहीं अधिक एक भविष्यदृष्टा। तकनीक में वह शीर्ष पर पहुंचे, डिजाइन में उनका कोई सानी नहीं था, मार्केटिंग तथा ब्रांडिंग के दिग्गज भी उनकी रणनीतियों का विश्लेषण करने में लगे रहते थे। वह आगे चलने वाले व्यक्ति थे, बाकी लोग बस उनका अनुगमन करते थे। स्टीव इस सहश्चाब्दि की महान प्रतिभा थे। स्टीव ने हमेशा बड़े सपने देखे, बड़ी कल्पनाएं कीं। जब कंप्यूटिंग की दुनिया काली स्क्रीनों से जद्दोजहद करती थी, वे मैकिंटोश कंप्यूटरों के माध्यम से ग्राफिकल यूजर इंटरफेस; कंप्यूटर की चित्रात्मक मॉनीटर स्क्रीन ले आए। जब इस मशीन के साथ हमारा संवाद कीबोर्ड तक सिमटा हुआ था तब उन्होंने माउस को लोकप्रिय बनाकर कंप्यूटिंग को काफी आसान और दोस्ताना बना दिया। कंप्यूटर के सीपीयू टावर का झंझट खत्म कर उसे मॉनीटर के भीतर ही समाहित कर दिया तो सिंगल इलेक्टि्रक वायर कंप्यूटिंग डिवाइस पेश कर हमें तारों के जंजाल में उलझने से बचाया। इसके बाद आइपॉड (2001), आइफोन (2007) तथा आइपैड (2010) की अपरिमित सफलता हमारे सामने आई। जब दुनिया कीबोर्ड और मोबाइल कीपैड में उलझी थी, तो उन्होंने हमें टचस्क्रीन से परिचित कराया। स्टीव जॉब्स थे ही ऐसे। अनूठे, अलग, मनमौजी किंतु परिणाम देने के लिए किसी भी हद तक जाने वाले। भारत से उनका गहरा रिश्ता रहा। स्टीव ने भारत में घूम-घूमकर मानसिक शांति की तलाश का उपक्रम किया। इसी आध्यात्मिक गहराई ने स्टीव के व्यक्तित्व और प्रतिभा को वह गहनता दी होगी, जिसके बल पर उन्होंने न सिर्फ तकनीकी विश्व के दिग्गजों के साथ प्रतिद्वंद्विता में कभी हार नहीं मानी, बल्कि कैंसर जैसे अपराजेय प्रतिद्वंद्वी के सामने भी प्रबल आत्मबल का परिचय दिया। स्टीव जानते थे कि उनके इलाज की अपनी सीमाएं हैं और तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें जाना होगा। छह साल पहले उन्होंने कहा था, इस बात का अहसास कि जल्दी ही मेरा निधन हो जाएगा, मेरे जीवन का सबसे बड़ा साधन है जो मुझे बड़े निर्णय करने के लिए प्रेरित करता है। इस अहसास ने मुझे किसी भी चीज को खोने की आशंकाओं के जंजाल से मुक्त कर दिया है। तुम्हारा समय सीमित है, इसलिए इसे किसी और का जीवन जीकर व्यर्थ मत करो। सिर्फ अपनी आत्मा की आवाज पर चलो। यही आध्यात्मिक और आत्मिक गहराई स्टीव जॉब्स को वह ऊंचाई देती है, जिसका पर्याय उनका आदर्श जीवन बना। स्टीफन पॉल जॉब्स अपनी कल्पनाओं, हौसलों, प्रेरणाओं और लक्ष्यों में हम आपका अक्स देख सकते हैं। कम लोग होते हैं जो दुनिया पर वैसी अमिट छाप छोड़कर जाते हैं, जैसी आपने छोड़ी।